“दीक्षा”

प्रश्न : दीक्षा क्यूँ लेनी चाहिए, दीक्षा मन्त्र की शक्ति क्या हैं  ?

उतर : मानव जीवन को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित करने वाली महाशक्ति हैं “दीक्षा” | “दीक्षा” ग्रहण करना मतलब एक मानव जीवन के सामान्य जीवन से उत्तीर्ण हो कर दैविक जीवन में प्रवेश करना, ईश्वरीय शक्ति के साथ जुड़ जाना, महामानवीय जीवन की यात्रा तैयार करना | मानव जीवन में सदगुरु से “दीक्षा” प्राप्त होना अत्यंत कठिन एवं एक असामान्य घटना हैं | किसी मनुष्य को उसके जीवन में एक बार गुरु “दीक्षा” प्राप्त हो जाये तो उस मानव का जीवन समझो धन्य हो गया और इसी सद्गुरु से दीक्षा के कारण ‘ईश्वरीय कृपा’ उस मानव जीवन पर हर समय प्रवाहित होते रहती हैं, समस्त दैवी शक्तियां मनुष्य जीवन को धन्य बनाने के लिए हर समय उसकी छाया संगी बन जाती हैं | गुरु शक्ति पराब्रम्हांडीय शक्ति हैं, ब्रम्हांड की पराशक्ति, गुरु-शक्ति में छुपी रहती हैं, गुरु-शक्ति जब अपनी महाशक्ति के साथ “दीक्षा” रुपी महामंत्र को शिष्य को प्रदान करते हैं, तब यह समझना चाहिए की उस दीक्षा रुपी महामंत्र के साथ-साथ गुरु रूपी महाशक्ति, एकम परा ब्रम्हांडीय शक्ति शिष्य के शरीर रूपी आधार में समा गयी हैं | उसने दीक्षा के रूप में एक महाशक्ति को अपना लिया वो और अब साधारण मनुष्य देह नहीं रहा, वो ईश्वरीय शक्ति में बदल गया, ईश्वरीय भाव में बदल गया, ईश्वरीय प्रेम में बदल गया और अब दैवीक देह हो गया हैं एवं समस्त  निरर्थक शक्ति उसको छोड़ चुकी हैं | अब शिष्य के शरीर में, मन में, जितनी भी निरर्थक चिंताए, ख़राब भावना थी वह और नहीं रही, पराब्रम्हांडीय शक्ति से जुड़ने के बाद वो मानव शारीर उसी में ही बदल गया, यह एक अतुलनीय बात हैं | “गुरु-शक्ति” ही महाकाश की महा-शक्ति हैं, और दीक्षा रूपी महामंत्र अक्षर शब्दबद्ध ब्रम्ह के रूप में शिष्य के शरीर में गुरु के माध्यम से प्रवेश करके, गुरुदेव शिष्य को एक दैविय मानव जीवन में परिवर्तित कर देते हैं | सारा जीवन कोशिस करे तो भी मनुष्य में इतनी क्षमता नहीं होती की वो खुद को पराब्रम्हांडीय शक्ति के रूप में बदल पाए, यह बात एक मात्र तब ही संभव हो सकती हैं यदि सदगुरु की कृपा हो अथवा सद्गुरु की अहेतुकी कृपा हो | लाखो मनुष्य जीवन में कभी-कभी, किसी-किसी को ही ऐसी कृपा प्राप्त होना संभव हैं | १३० कोटि मनुष्य में सिर्फ ५ प्रतिशत मनुष्य ही जगत में दीक्षित हुए हैं, और कहा जाता हैं यह ५ प्रतिशत मनुष्य जिनको दीक्षा प्राप्त हुई हैं, इन लोगों के कारण ही देश में इतनी शांति हैं, नहीं तो सारा देश ही असुरिक शक्तियों से भर जाता और दुनिया ख़त्म हो जाती | यह हैं “दीक्षा” का महत्व | दीक्षा के कारण कई मानव जीवन में शान्ति आ जाते हैं, और वो लोग अपराधिक कर्मो से दूर हो जाते हैं, सबके प्रति उनके मन में प्रेम की भावना आ जाती हैं, शन्ति के वातावरण में ही वो लोग रहना पसंद करते हैं, दुसरो को भी शांति में रहने देते है | एक मानव जीवन का भाव इस तरह से बदल जाना, एक अविश्वसनीय घटना हैं | इस तरह से सद्गुरु “दीक्षा” दे कर मानव जीवन को सम्पूर्ण रूप में बदल कर, समस्त देश को, जगत को मंगल विधान करते हैं, यह “दीक्षा” की असीम असमाप्त अनंत शक्ति हैं | दीक्षा के बाद मनुष्य जीवन अन्धकार से अलौकिकमय जिन्दगी में आ जाते हैं | मनुष्य जो जन्म लेते ही जागतिक दुःख व कष्टों में घिर जाता  हैं, जगत की माया, मोह, लोभ, हिंसा उसको खा जाती हैं, जिसके फलस्वरूप उसे हर समय एक उद्दीपन जीवन जीना पड़ता हैं, दुश्चिंता, दुर्भावना उसकी जीवन साथी बन जाती हैं, मन से आनंद सम्पूर्ण रूप से गायब हो जाता हैं, सब समय अमानवीय काम करना, चिंता करना उनका जिवन बन जाता हैं, जो की सद्गुरु से “दीक्षा” के बाद सम्पूर्ण निरर्थक भाव मन से चिंता से हठ जाती हैं, मन सम्पुर्ण रूप से बदल कर एक सदर्थक मन में, सदर्थक मानव जीवन में बदल जाता हैं, मन ईश्वर मुखी, गुरु-मुखी होने के कारण एवं सब समय जप में रहने के कारण सारी बुरी चिंता, भावना उनको छोड़ कर दूर भाग जाती हैं, मन शांति पूर्ण हो जाता हैं, चित्त में आनंद भरपूर रहता हैं | सब समय मन, चित्त एक ईश्वरीय भाव में पूर्ण रहता हैं और मानव जीवन एक दैवी जीवन में बदल जाता हैं | दीक्षा मन्त्र पराब्रम्हांडीय शक्ति से भरपूर रहता हैं एवं इस शब्द रूपी महाशक्ति को ही गुरु शिष्य को प्रदान करते हैं मन्त्र के रूप में, और इस दीक्षा रुपी महामन्त्र को शिष्य अपने जीवन में लगातार अभ्यास में लाते हुए स्वयं एक दिन गुरु बन जाता हैं और जगत का मंगल करते हुए बहुत सारे मानव जीवन को इस ईश्वरीय पथ में लाते हैं | इसी तरीके से गुरु “दीक्षा” को परंपरा में लाते हैं, सारा जगत का जीवन मंगल करते हैं और मनुष्य जीवन को भी | धन्य हो यह गुरु दीक्षा, धन्य हो सद्गुरु, धन्य हो यह मानव जीवन, जो वस्तु देवताओ को नहीं मिल पाती हैं वो साधारण मनुष्य को मिल जाती हैं केवल मात्र ‘गुरु-कृपा’ से | यह इस पराब्रम्हांडीय संसार में एक चमत्कार ही हैं |